हमारे हाथों में इक शक़्ल चाँद जैसी थी तुम्हें ये कैसे बताएं वो रात कैसी थी.. महक रहे थे मिरे होंठ उसकी ख़ुश्बू से अजीब आग थी बिलकुल गुलाब जैसी थी...