जब भी मिलता है एक नया अफसाना लिखता है। हर खत में मुझकों वो अपना दीवाना लिखता है। मुझकों ही वो अपनी ज

जब भी मिलता है एक नया अफसाना लिखता है।
हर खत में मुझकों वो अपना दीवाना लिखता है।
मुझकों ही वो अपनी जागीर समझता है ऐ राज।
छोड़कर मुझकों जाना मत ये बन अनजाना लिखता है।।

जब भी मिलता है एक नया अफसाना लिखता है। हर खत में मुझकों वो अपना दीवाना लिखता है। मुझकों ही वो अपनी जागीर समझता है ऐ राज। छोड़कर मुझकों जाना मत ये बन अनजाना लिखता है।।