अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता जिस से इक शख़्स का परदा नहीं रखा जाता एक तो बस में नहीं तुझ से

अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता
जिस से इक शख़्स का परदा नहीं रखा जाता

एक तो बस में नहीं तुझ से मुहब्बत न करू
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रखा जाता

पढ़ने जाता हूं तो तस्मे नहीं बांदे जाते
घर पलटता हूं तो बस्ता नहीं रखा जाता

दर-ओ-दीवार पे जंगल का गुमां होता है
मुझ से अब घर में परिंदा नहीं रखा जाता 
Tehzeeb Hafi

अब मजीद उससे ये रिश्ता नहीं रखा जाता जिस से इक शख़्स का परदा नहीं रखा जाता एक तो बस में नहीं तुझ से मुहब्बत न करू और फिर हाथ भी हल्का नहीं रखा जाता पढ़ने जाता हूं तो तस्मे नहीं बांदे जाते घर पलटता हूं तो बस्ता नहीं रखा जाता दर-ओ-दीवार पे जंगल का गुमां होता है मुझ से अब घर में परिंदा नहीं रखा जाता Tehzeeb Hafi