वो जो आई थी ज़िंदगी में आस बनकर
ख़ंजर उसी ने मारा है ख़ास बनकर,
समझती है दुनिया भोली-भाली उसे
उसी न
वो जो आई थी ज़िंदगी में आस बनकर
ख़ंजर उसी ने मारा है ख़ास बनकर,
समझती है दुनिया भोली-भाली उसे
उसी ने लूटा है मुझे बदमाश बनकर,
टूट चुका है जिस्म से रूह का त'अल्लुक़
हाँ ! मैं ज़िंदा तो हूँ मगर लाश बनकर।
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