कुछ अनकहे लफ़्ज़ों को कुचलकर निकलती हैं, ये दूरियां भी रोज कातिल बनकर निकलती हैं।

कुछ अनकहे लफ़्ज़ों को कुचलकर निकलती हैं,
ये दूरियां भी रोज कातिल बनकर निकलती हैं।

कुछ अनकहे लफ़्ज़ों को कुचलकर निकलती हैं, ये दूरियां भी रोज कातिल बनकर निकलती हैं।