शान से मुस्कुरा कर,सिक्के उछाल के निकले
हम जिसके भी, ख़्वाब ओ खयाल से निकले
ऐसे निकले कि फिर,कभी मु
शान से मुस्कुरा कर,सिक्के उछाल के निकले
हम जिसके भी, ख़्वाब ओ खयाल से निकले
ऐसे निकले कि फिर,कभी मुड़कर नहीं देखा
जैसे की कोई तीर, किसी, कमान से, निकले
भैरव